Hkkjr esa Ekqlyekuksa dh x+jhch dh otg fgUnw lkgwdkj ;k mudk iWawthokn flLVe gS&vYykek lj Mk0 bd+cky
सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा
हम बुलबुले हैं इस की ये गुलिस्तां हमारा
मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना
हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्तां हमारा
;wuku
vks felz vks :ek lc feV x;s tgkaW ls]
Ckd+h exj gS vc rd ukeks fu’kkW
gekjk A
dqN ckr gS fd gLrh feVrh ugha gekjh]
lfn;ksa jgk gS nq’keu nkSj , tgkWa gekjkA
xq+jcr esa gksa vxj ge]jgrk gS fny oru esa]
le>ks ogha gesa Hkh fny gS tgkWa gekjkA
Allama Iqbal Dislike Nehru: 28 मई 1937 को अल्लामा इक़बाल ने मुहम्मद अली जिन्ना को एक चिट्ठी लिखी। इक़बाल ने जिन्ना से पूछा कि मुस्लिम लीग केवल अमीर मुसलमानों की पार्टी बनी रहेगी या फिर वह आम हिंदुस्तानी मुसलमानों के हक़ की बात भी करेगी? इकबाल ने इस चिट्ठी मे जवाहरलाल नेहरू की समाजवादी सोच पर सवाल उठाए और मुसलमानों के लिए अलग सूबे बनाने की वकालत भी की ताकि वहां शरीयत के हिसाब से शासन चलाया जा सके।
इक़बाल ने
जिन्ना को लिखा था,
‘मुसलमान यह महसूस कर रहा है कि पिछले 200 बरस से उसका
पतन ही हो रहा है। मुसलमानों की हैसियत गिरती ही जा रही है। आम तौर पर मुसलमान यह
मानता है कि उसकी ग़रीबी की वजह हिंदू साहूकार या उनका
पूंजीवाद है। ऐसे में जवाहरलाल के नास्तिक समाजवाद में मुसलमान कोई ख़ास
दिलचस्पी नहीं लेगा। इस्लामिक़ क़ानूनों को बहुत बारीक़ी से पढ़ने और समझने के बाद
मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि अगर इसे सही तरीक़े से लागू किया जाए तो मुसलमान का
भला होगा। लेकिन, इस्लाम
की शरीयत इस मुल्क में तब तक लागू नहीं की जा सकती, जब तक
हिंदुस्तान में एक आज़ाद मुस्लिम सूबा या कई सूबे नहीं बनते। मुझे लगता है कि अगर
शरीयत की बिनाह पर मुस्लिम सूबे नहीं बनाए जाते, तो मुल्क में
ख़ानाजंगी (गृह युद्ध) होना तय है। आपको नहीं लगता कि हिंदुस्तान में मुसलमानों की
अक्सरियत (बहुमत) वाले सूबे बनाने का वक़्त आ गया है? मुझे लगता है
कि जवाहरलाल नेहरू के नास्तिक समाजवाद का यह सबसे सटीक जवाब है, जो आप दे सकते
हैं।’
इक़बाल नेहरू को इतना नापसंद क्यों करते थे, उसकी वजह 1929 की नेहरू की एक
चिट्ठी से साफ़ हो जाती है। नेहरू ने 16 फ़रवरी 1929 को पद्मजा
नायडू को लिखी एक चिट्ठी में इक़बाल के बारे में अपने ख़यालात बयान किए थे। नेहरू
ने इक़बाल के बारे में लिखा था, ‘वह हमेशा से एक ऐसी पहेली रहे हैं, जिसको मैं
सुलझा नहीं पाया हूं। कोई सच्चा शायर इतना भयंकर सांप्रदायिक और संकुचित दिमाग़ का
इंसान कैसे हो सकता है?’
इस चिट्ठी के छह साल बाद 1935 में कलकत्ते से
छपने वाली मैग़ज़ीन मॉडर्न रिव्यू में सर आग़ा ख़ां के बारे में एक लेख लिखते हुए
नेहरू ने कई बार आग़ा ख़ां के प्रोग्रेसिव ख़यालात और इक़बाल की संकीर्ण सोच की
तुलना की। इक़बाल को भारत की एकता, तरक़्क़ी और बेहतर भविष्य के लिए
बड़ा ख़तरा बताया। मुसलमानों को आगाह किया कि वे इक़बाल के बहकावे में न आएं।
नेहरू हिंदुस्तानी मुसलमानों को समझा रहे थे कि कमाल अतातुर्क पाशा ने तुर्की में
कट्टरपंथी और रूढ़िवादी इस्लाम को ठुकरा दिया है, लेकिन इक़बाल
उसी कट्टरपंथी इस्लाम की वकालत कर रहे हैं। नेहरू ने लिखा कि इक़बाल इस्लाम के नाम
पर मुसलमानों को इकट्ठा करने की बात भले कर रहे हों, असल में वह देश
तोड़ने की बातें कर रहे हैं।
इक़बाल और नेहरू, दोनों वैचारिक
तौर पर विपरीत ध्रुवों पर खड़े थे। नेहरू को लगता था कि इक़बाल बड़े शायर भले हों, लेकिन वह
सामंतवादी हैं और मुस्लिम समुदाय को अलगाववाद की तरफ़ ले जा रहे हैं। नेहरू यह
ज़रूर मानते थे कि इक़बाल अच्छे शायर हैं, लेकिन वह उन्हें जननेता या अवाम के
बीच लोकप्रिय मुस्लिम नेता मानने को तैयार नहीं थे।
दिलचस्प बात यह है कि नेहरू और इक़बाल एक-दूसरे
के विचारों के विरोधी थे। एक-दूसरे के ख़िलाफ़ लिख रहे थे, लेकिन 1938 से पहले दोनों
की कोई मुलाक़ात नहीं हुई थी। मौत से लगभग चार महीने पहले जनवरी 1938 में जब इक़बाल
बिस्तर से लगे हुए थे, तो जवाहरलाल नेहरू लाहौर गए। ख़बर मिलते ही
इक़बाल ने उन्हें मिलने के लिए बुला भेजा।
नेहरू ने अपनी किताब डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया में
इक़बाल से इस मुलाक़ात का ज़िक्र किया है। नेहरू ने लिखा है, ‘उन्होंने मुझे
बुला भेजा और मैंने ख़ुशी ख़ुशी उनके हुक्म की तामील की। हमने तमाम मुद्दों पर
बातें कीं। जब मैं चलने लगा, तो उन्होंने मुझसे कहा कि: ‘आप में
और जिन्ना में कौन सी बात एक जैसी है? वह एक राजनेता हैं, और आप एक
देशभक्त।’’
हालांकि, नेहरू और
इक़बाल की इस मुलाक़ात के बारे में जो दूसरे हवाले मिलते हैं, वे इतने
ख़ुशगवार नहीं हैं। नेहरू और इक़बाल की इस मुलाक़ात के दौरान इक़बाल के बेटे जावेद
इक़बाल भी मौजूद थे। बाद में जावेद इक़बाल ने लिखा था कि इक़बाल ने नेहरू से पूछा
था कि आपके समाजवादी विचारों से कांग्रेस में कितने लोग सहमत हैं। नेहरू ने जवाब
दिया था, छह
लोग। तब इक़बाल ने नेहरू से कहा था कि जब आपके समाजवादी विचारों पर कांग्रेस के
लोग ही राज़ी नहीं हैं, तो आप 10 करोड़ मुसलमानों से यह उम्मीद कैसे
लगा सकते हैं कि वे कांग्रेस पर यक़ीन करने की आपकी सलाह पर भरोसा कर लें?
ज़ाहिर है, नेहरू ने इक़बाल से पहली और आख़िरी
मुलाक़ात का ज़ो ज़िक्र किया, वह शायद मरते हुए इंसान को माफ़ कर
देने की नीयत से किया था। लेकिन, इक़बाल आख़िरी वक़्त तक मुसलमानों के
लिए एक अलग मुल्क बनाने की मांग पर टिके हुए थे।
इक़बाल
के बेटे जावेद इक़बाल ने लिखा है कि नेहरू के बारे में उनके पिता ने कहा था कि, ‘साफ़ है कि एक
भारतीय राष्ट्रवादी अपने राजनीतिक आदर्शवाद में इस क़दर अंधा है कि वह यह सच्चाई
देख ही नहीं पा रहा है कि उत्तर पश्चिम भारत के मुसलमान अपने मुस्तकबिल का फ़ैसला
ख़ुद करना चाहते हैं।’
वैसे, इक़बाल के बारे
मे नेहरू के ख़यालात में भी मुलाक़ात के बाद कोई फ़र्क़ नहीं आया था। नेहरू ने
उन्हें इस्लाम के दबदबे की वकालत करने वाला सबसे ख़तरनाक इंसान क़रार दिया था।
आज जब दिल्ली
यूनिवर्सिटी के सिलेबस से इक़बाल को हटाने पर सियासी खींचतान हो रही है. तो, एक-दूसरे को
लेकर नेहरू और इक़बाल के इन ख़यालात को जानना-समझना इस बहस को और दिलचस्प बना देता
है।
सारे
जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा से लेकर.... मुस्लिम हैं हम, वतन है सारा
जहां हमारा तक का इक़बाल का सफ़र विरोधाभासों से भरा रहा है। ये विरोधाभास तब बेहद
ख़तरनाक हो जाते हैं, जब पुनर्जागरण की बात करने वाला कोई लोकप्रिय
शायर अचानक शरीयत के राज की वकालत करने लगे।
uksV&;g uo Hkkjr xksYM dh 25 tqykbZ 2023 dh izSl fjyht+ ds
lkStU; ls l/kU;okn ds lkFk izdkf’kr fd;k tk jgk gS rkfd bl egRoiw.kZ U;wt+ dks T+;knk
ls T+;knk gekjs fgUnh ds ikBd uo Hkkjr xksYM esa i<+ ldsaA&laiknd
1 comment:
Iqbal died on 20th April 1938, much before the Pakistan Resolution passed in March 1939. Iqbal strongly advocated a federal system and international humanism, which goes against the view that he fathered the Pakistan idea. Edward Thompson, quoted Iqbal, in his book 'Enlist India for Freedom' stating that "the Pakistan plan would be disastrous to the British government, disastrous to the Hindu community and disastrous to the Moslem community.” As regards to some letters alleged to be written by him to Jinnah, the researchers doubt the authenticity of those, which has been planted by Pakistanis to justify their separation from India
Post a Comment