भाषा विज्ञान विभाग में आयोजित समारोह में ‘उर्दू पत्रकारिताः विश्लेषणात्मक एवं भाषाई विमर्श’ का शुभारंभ
अलीगढ़ 21 जनवरीःः अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के भाषा विज्ञान विभाग में ‘उर्दू पत्रकारिताः विश्लेषणात्मक और भाषाई प्रवचन’ शीर्षक से प्रकाशित पुस्तक का औपचारिक विमोचन समारोह आयोजित किया गया। इस पुस्तक में उर्दू पत्रकारिता के दो सौ वर्ष पूरे होने के अवसर पर आयोजित एक संगोष्ठी की कार्यवाही शामिल है। इस अवसर पर राष्ट्रीय उर्दू भाषा संवर्धन परिषद (एनसीपीयूएल) के निदेशक प्रो.अकील अहमद मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे। .
समारोह में अध्यक्षीय भाषण देते हुए अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के प्रो वाइस चांसलर प्रो. मोहम्मद गुलरेज ने कहा कि किसी भी देश के मानकीकरण में उस देश की शैक्षिक, पत्रकारिता और आर्थिक व्यवस्था महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसके साथ ही सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन में अध्यापन एवं अध्यापन तथा विज्ञान एवं कला के विभिन्न क्षेत्रों में भाषा एवं अभिव्यक्ति तथा जनसंचार का विशेष महत्व है। चूँकि जनसंचार का सीधा संबंध भाषा से होता है और भाषा स्वयं भी माध्यम अभिव्यक्ति का माध्यम होती है, इस संदर्भ में इस पुस्तक का विशेष महत्व है।उन्होंने कहा कि जब भी उर्दू पत्रकारिता पर चर्चा होगी तो इस किताब का हवाला दिया जाएगा। यह पुस्तक सर सैयद अहमद खान, मुंशी सदा सुख, मौलवी मुहम्मद बाकर, मौलाना अबुल कलाम आजाद, मुंशी नवल किशोर, जफर अली खान, मौलाना मुहम्मद अली जौहर, मौलाना हसरत मोहानी, पंडित रतन नाथ सरशार, मौलाना अब्दुल माजिद दरियाबादी, नंद किशोर विक्रम, जीडी टंडन, कुलदीप नैयर जैसे प्रसिद्ध उर्दू पत्रकारों के योगदान के इतिहास पर आधारित है।
विशिष्ट अतिथि प्रोफेसर अकील अहमद, निदेशक, राष्ट्रीय उर्दू भाषा संवर्धन परिषद, नई दिल्ली ने कहा कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय ने विज्ञान और ज्ञान के विकास और उर्दू पत्रकारिता के द्विशताब्दी समारोह के संबंध में विशिष्ट भूमिका निभाई है। भाषाविज्ञान एक ऐतिहासिक संगोष्ठी का आयोजन अपने स्वभाव में एक व्यापक कदम था। इस संगोष्ठी की कार्यवाही को प्रो. जहाँगीर वारसी और डॉ. सबाहुद्दीन अहमद ने बड़ी मेहनत और उत्साह के साथ संकलित और प्रकाशित किया है, जिसके लिए वे बधाई के पात्र हैं।
उन्होंने कहा कि उर्दू पत्रकारिता विषय पर प्रकाशित यह पुस्तक दस्तावेजी महत्व रखती है और मुझे उम्मीद है कि शिक्षक और छात्र इस पुस्तक का सदुपयोग करेंगे।
इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त करते हुए विशिष्ट अतिथि जनसंचार विभाग के प्रोफेसर शाफे किदवई ने कहा कि इस पुस्तक के प्रकाशन से उर्दू पत्रकारिता में भाषा और अभिव्यक्ति के भाषाई पहलू उजागर होंगे। उन्होंने कहा कि इस पुस्तक में शामिल लेखों में उर्दू पत्रकारिता के इतिहास के बजाय पत्रकारिता के भाषाई पहलुओं पर विशेष ध्यान दिया गया है और इससे आधुनिक पत्रकारिता की प्रवृत्तियों पर चिंतन की संभावना पैदा होती है।
जाने-माने कथाकार सैयद मुहम्मद अशरफ (आईआरएस) ने कहा कि पत्रकारिता में इस्तेमाल की जाने वाली भाषा भी समय और स्थान के बदलाव के साथ बदलती रही है और इस बदलाव के पीछे कई कारक हैं जो एक पत्रकार को एक नई भाषा बनाने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। फिर वह आवश्यकतानुसार भाषा का प्रयोग करता है।
उर्दू अकादमी, जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नई दिल्ली के पूर्व निदेशक प्रो. गजनफर अली ने कहा कि वैश्विक स्तर पर मीडिया में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन हो रहा है और दुनिया की सभी भाषाओं को अब वैश्विक व्यवस्था में एकीकृत और सुसंगत किया जा रहा है।
भाषाविज्ञान विभाग के प्रमुख प्रो. मुहम्मद जहांगीर वारसी ने अपने संबोधन में कहा कि उर्दू पत्रकारिता ने नई सोच, नए विचार, नई अंतर्दृष्टि, नए तरीके और नई वैज्ञानिक शब्दावली के साथ अन्य मीडिया के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने की पुरजोर कोशिश की है। इस प्रयास में उर्दू संपादकों, उर्दू मीडिया के लेखकों, साथ ही उर्दू पत्रकारिता से जुड़े तमाम विद्वानों के सामने आने वाली चुनौतियों को महसूस करते हुए यह संगोष्ठी आयोजित करने का निर्णय लिया गया था।
इस अवसर पर मानद अतिथि कला संकाय के डीन प्रो. आरिफ नजीर, बीबीसी के पत्रकार इकबाल अहमद और उर्दू विभाग के अध्यक्ष प्रो. मुहम्मद अली जौहर ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
विभाग के श्री मसूद अली बेग ने कार्यक्रम का संचालन किया जबकि प्रो. शबाना हमीद ने अतिथियों का आभार व्यक्त किया।
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