Prof Naima Khatoon addressing the Rumi Day” on the Birth Anniversary of Maulana Jalaluddin Rumi at Institute of Persian Research on dias Professor Mohammad Usman Ghani, Professor Azarmi Dukht Safavi
एएमयू के फारसी शोध संस्थान में मशहूर कवि मौलाना जलालुद्दीन रूमी की जयंती पर कार्यक्रम का आयोजन
अलीगढ़, 29 सितम्बरः अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के फारसी शोध संस्था द्वारा प्रख्यात ईरानी सूफी कवि मौलाना जलालुद्दीन मोहम्मद रूमी की जयंती के उपलक्ष्य में “रोज-ए-रूमी” (रूमी डे) का आयोजन किया गया। कला संकाय लाउंज में आयोजित इस कार्यक्रम का उद्घाटन एएमयू की कुलपति प्रोफेसर नइमा खातून ने किया। मुख्य वक्ता प्रोफेसर काजी जमाल हुसैन (प्रसिद्ध उर्दू विद्वान) रहे। कार्यक्रम की अध्यक्षता फारसी शोध संस्थान की संस्थापक व सलाहकार प्रोफेसर आजरमी दुख्त सफवी ने की, जबकि कला संकाय के डीन प्रोफेसर टी.एन. सतीशन मुख्य अतिथि और भाषाविज्ञान विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रोफेसर एम.जे. वारसी विशेष अतिथि रहे।
फारसी शोध संस्थान के निदेशक प्रोफेसर मोहम्मद उस्मान गनी ने स्वागत भाषण में मौलाना रूमी के साहित्यिक और सूफी योगदान को रेखांकित करते हुए कहा कि रूमी की “मसनवी मानवी” अमर कृति है, जो आत्मिक सत्य के खोजकर्ताओं के लिए हमेशा मार्गदर्शन करती रहेगी। इसमें आत्मा, प्रेम, अस्तित्व की एकता, संघर्ष और ईश्वर पर विश्वास जैसे गहरे विषय समाहित हैं।
कुलपति प्रोफेसर नइमा खातून ने कहा कि रूमी ने अपनी सूफी और प्रेममय कविता के माध्यम से आत्म-ज्ञान और ईश्वरीय अनुभूति के विविध पहलुओं को उजागर किया और सूफी जगत में एक क्रांति पैदा की। उन्होंने कहा कि मसनवी में निहित आध्यात्मिक रहस्य आज भी ज्ञान की चर्चा में उद्धृत किए जाते हैं। उन्होंने संस्थान की टीम को इस आयोजन के लिए बधाई दी।
अध्यक्षीय भाषण में प्रोफेसर आजरमी दुख्त सफवी ने कहा कि लगभग 800 वर्ष पूर्व रूमी ने प्रेम, मानवता और करुणा का ऐसा सार्वभौमिक संदेश दिया जो धर्म, जाति और संस्कृति से परे है। मंगोल आक्रमणों से तबाह इस्लामी जगत में रूमी की सूफियाना दर्शन प्रेम और मानवतावाद का पैगाम लेकर आया। उनकी मसनवी, जिसमें 26 हजार से अधिक शेर हैं, अस्तित्व की एकता, सूफी चिंतन और शांति का पाठ पढ़ाती है। आज के अन्याय और हिंसा से भरे दौर में रूमी का संदेश और भी प्रासंगिक है।
प्रोफेसर काजी जमाल हुसैन ने कहा कि रूमी का प्रेम का सिद्धांत बहुआयामी है। मानवता के प्रति प्रेम, ईश्वर से प्रेम और प्रकृति से प्रेम। उनके अनुसार प्रेम सभी रोगों की दवा है और अपने आप में एक धर्म है।
प्रोफेसर टी.एन. सतीशन ने रूमी को महान कवि, दार्शनिक और दूरदर्शी बताते हुए कहा कि उन्होंने अपने लेखन से दुनिया को एकता, भाईचारे और प्रेम का सबक दिया।
प्रोफेसर एम.जे. वारसी ने रूमी को फारसी साहित्य का चमकता सितारा बताया और कहा कि उनके चिंतन का केंद्र बिंदु प्रेम है, जो मनुष्य को आत्मविश्वास देता है और ब्रह्मांड से सामंजस्य स्थापित करने में मदद करता है।
इस अवसर पर फारसी शोध संस्थान ने कुलपति प्रोफेसर नईमा खातून को भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी की फेलो के रूप में चयनित होने पर स्मृति चिह्न प्रदान कर सम्मानित किया।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. मोहम्मद एहतेशामुद्दीन (सहायक निदेशक, फारसी शोध संस्थान) ने किया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन निदेशक प्रोफेसर मोहम्मद उस्मान गनी ने प्रस्तुत किया।
कार्यक्रम में विभिन्न संकायों के शिक्षकों और छात्रों की बड़ी संख्या में उपस्थिति रही, जिनमें प्रोफेसर जकिया सिद्दीकी, प्रोफेसर शाफे किदवई, प्रोफेसर सैयद सिराज अजमली, प्रोफेसर विभा शर्मा, प्रोफेसर समीना खान, प्रोफेसर सलाहुद्दीन, प्रोफेसर आयशा मुनीरा और प्रोफेसर गुल्फशन खान मुख्य रूप से शामिल रहे।
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