Wednesday, July 30, 2025

‘सोशल इनक्लुज़न एंड इन्क्लूसिव पोलिसीज़

 

एमएमटीटीसीजामिया ने किया सोशल इनक्लुज़न एंड इन्क्लूसिव पोलिसीज़ : टुवर्ड्स इक्विटी एंड इनक्लुज़न’ विषय पर दो साप्ताहिक अंतःविषय रिफ्रेशर कोर्स संपन्न

जामिया मिल्लिया इस्लामिया (जेएमआई) स्थित मालवीय मिशन शिक्षक प्रशिक्षण केंद्र (एमएमटीटीसी) ने 14 जुलाई से 26 जुलाई, 2025 तक आयोजित सोशल इनक्लुज़न एंड इन्क्लूसिव पोलिसीज़ : टुवर्ड्स इक्विटी एंड इनक्लुज़न’ शीर्षक पर दो सप्ताह का ऑनलाइन अंतःविषय पुनश्चर्या पाठ्यक्रम सफलतापूर्वक पूरा कर लिया है। इस कार्यक्रम में 48 विषयों के 126 संकाय सदस्यों ने सक्रिय भागीदारी कीजो 20 से अधिक भारतीय राज्यों के विश्वविद्यालयों का प्रतिनिधित्व करते थेजिनमें केंद्रीय और राज्य संस्थानों के साथ-साथ डीम्ड और निजी विश्वविद्यालय भी शामिल थे। ये सत्र विभिन्न बहुविषयक दृष्टिकोणों से आयोजित किए गए थे।

पुनश्चर्या पाठ्यक्रम का उद्घाटन जामिया मिल्लिया इस्लामिया के माननीय कुलपति प्रो. मज़हर आसिफ़ ने किया। आरंभ मेंएमएमटीटीसी की मानद निदेशक प्रो. कुलविंदर कौर ने प्रतिभागियों का गर्मजोशी से स्वागत किया और मुख्य अतिथि प्रो. मज़हर आसिफ़ और पाठ्यक्रम समन्वयकजामिया मिल्लिया इस्लामिया के सामाजिक समावेशन अध्ययन केंद्र के डॉ. अरविंद कुमार का परिचय कराया।

अपने परिचयात्मक भाषण मेंप्रो. कौर ने 'समावेश के विचारपर पाठ्यक्रम की संकल्पना के पीछे की दृष्टि साझा की। उन्होंने इसके उद्देश्यपहचान के विभिन्न अक्षों पर ऐतिहासिक और वर्तमान बहिष्कारों की आलोचनात्मक जाँच करना और शिक्षकों को आत्मचिंतनशील और समावेशी कक्षाओं को बढ़ावा देने के लिए सशक्त बनाना- पर चर्चा की।

माननीय कुलपति ने अपने उद्घाटन भाषण में इस बात पर ज़ोर दिया कि कैसे भारतसबसे प्राचीन सभ्यताओं में से एक होने के नातेसामाजिक विविधता और बहुलवाद के पक्ष में रहा है। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि जातिधर्म या जातीयता जैसी मूलभूत पहचानें सामाजिक रूप से निर्मित होती हैंऔर हम इन प्रभावों से मुक्त होकर पैदा होते हैं।

प्रो. आसिफ़ ने उच्च शिक्षा पर अखिल भारतीय सर्वेक्षण (एआईएसएचई) रिपोर्ट 2021-2022 के आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि उच्च शिक्षण संस्थानों में सकल नामांकन अनुपात (जीईआर) अनुसूचित जाति (एससी)अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) जैसे हाशिये के समुदायों के छात्रों के बढ़ते प्रतिनिधित्व का प्रतिबिंब है। उन्होंने विभिन्न धार्मिक अल्पसंख्यकों और उच्च शिक्षा संस्थानों में उनके प्रतिनिधित्व के आंकड़े साझा किए। उन्होंने कबीरनानक, दादूरैदास जैसे भक्त-संतों और महात्मा गांधीसावित्रीबाई फुले और डॉ. अंबेडकर जैसे सामाजिक क्रांतिकारियों द्वारा निभाई गई भूमिका पर चर्चा कीजिन्होंने वंचित पृष्ठभूमि में पैदा होने के बावजूद लाखों लोगों के जीवन को बदल दिया। प्रो. आसिफ़ ने जोर देकर कहा कि एनईपी-2020 समावेशी दृष्टिकोण को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हैजो भारतीय संविधान के अनुच्छेद- 14, 15, 16 और 46 में निहित है। उन्होंने अपने समृद्ध उद्घाटन भाषण का समापन मिर्ज़ा ग़ालिब के एक उर्दू शेर से किया:

'बस-की-दुश्वार है हर काम का आसान होना

आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसान होना'

 

इसके बादपाठ्यक्रम समन्वयक डॉ. अरविंद कुमार ने बताया कि पाठ्यक्रम तीन घटकों का मिश्रण है: (i) सैद्धांतिक और शैक्षणिक हस्तक्षेप; (ii) जातिजेंडरजातीयताभाषा आदि के मुद्दों पर संवेदनशीलताऔर (iii) समावेशी नीतियों को लागू करने वालों की ओर से कार्रवाई उन्मुख हस्तक्षेप।

 

जामिया के इतिहास विभाग की प्रो. फरहत नसरीनमानू विश्वविद्यालय के प्रो. निशिकांत कोलगेपंजाब विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग के प्रो. राजेश गिलजामिया के समाजशास्त्र विभाग की डॉ. गोमती बोदरा हेम्ब्रोमसीएसएसएसकोलकाता की डॉ. विभूति नायकमहिला एवं विकास अध्ययन केंद्र की निदेशक प्रो. एन. मणिमेकलाईडॉ. प्रशांत नेगीडीयू के इतिहास विभाग के प्रो. रजीउद्दीन अकील और प्रो. चारु गुप्ता ने समावेश के सिद्धांतों और व्यवहारों पर व्याख्यान दिए।

संवेदीकरण के घटक में जेएमआई के एंटी-डिस्क्रीमिनेशन अधिकारी प्रोफेसर अर्चना दासीप्रोफेसर निशात जैदीमानद. निदेशकसरोजिनी नायडू महिला अध्ययन केंद्रजामियाडॉ. नितिन तगाडे, हैदराबाद विश्वविद्यालयप्रोफेसर संतोष सिंह, अम्बेडकर विश्वविद्यालयप्रोफेसर चिन्ना राव, सीएसएसआईजेएनयूसेंटर फॉर नॉर्थ ईस्ट स्टडीज एंड पॉलिसी रिसर्चजेएमआई से डॉ. के. कोखोडॉ कोर्सी डी. खारशींगआईआईटीबॉम्बे से प्रोफेसर रमेश बैरी के व्याख्यान शामिल थे

अधिक समावेशी समाज बनाने के लिए कार्य उन्मुख दृष्टिकोण पर व्याख्यान डॉ. ध्रुब कुमार सिंहइतिहास विभागबीएचयूप्रो. निसार खानवास्तुकला विभागजेएमआईडॉ. दीप्ति मुलगुंडशिव नादर विश्वविद्यालयडॉ. प्रद्युम्न बैगसमाजशास्त्र विभागजेएमआईप्रो. रवि कांतसीएसडीएस और प्रोफेसर विशाल चौहान जैसे विशेषज्ञों द्वारा दिए गए।

कुछ अन्य प्रमुख शिक्षाविदों में डॉ. रविकांत मिश्रा, (संयुक्त निदेशकप्रधानमंत्री स्मारक संग्रहालय और पुस्तकालय)श्री अभय कुमारआईएफएस, (भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद के उप महानिदेशक)श्री नवल किशोर राम, (आयुक्तपुणेऔर पूर्व निदेशकपीएमओपूर्व संयुक्त सचिववित्त मंत्रालय) और श्री चितरंजन त्रिपाठीनिदेशक राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय शामिल थे।

यूजीसी के निर्देशानुसारप्रतिभागियों को उनके लर्निंग आउटकम जाँच के लिए गहन मूल्यांकन अभ्यास से गुजरना पड़ा। इसमें एमसीक्यू परीक्षासमानता और समावेशन से संबंधित विषयों पर समूह प्रस्तुति शामिल थी। फीडबैक सत्र के दौरान प्रतिभागियों ने एकमत से कहा कि यह पाठ्यक्रम अपनी कल्पना और कार्यान्वयन में अद्वितीय था। उन्होंने बताया कि इस कार्यक्रम से प्राप्त सीख से उन्हें अपने संस्थानों में समावेशी कक्षाओं की दिशा में काम करने में मदद मिलेगी।

प्रो. साइमा सईद

मुख्य जनसंपर्क अधिकारी

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