Saturday, June 3, 2023

HISTORY OF DARUL ULOOM DEOBAND

 

nk#y mywe nsocan

आज से ठीक 157 साल पहले, आज ही के दिन ही, 30 मई 1866 को मौलाना क़ासिम नानौतवी के हाथों दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी इस्लामिक यूनिवर्सिटी "दारुल उलूम" की बुनियाद सहारनपुर, देवबंद में रखी गयी थी। यह मिस्र और मदीना यूनिवर्सिटी के बाद दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी इस्लामिक यूनिवर्सिटी है। यहां दुनिया भर से स्टूडेंट्स इस्लामिक तालीम के लिए आते है।

इस यूनिवर्सिटी के उलेमा--कराम 1857 के इंकलाब में भी सक्रिय थे 10 मई 1857 को "शामली की जंग" में ब्रिटिश फौज के खिलाफ मौलाना इम्दादुल्लाह मुहाजिर मक्की और मौलान रशीद अहमद गंगोही के साथ मौलाना क़ासिम नानौतवी भी शामिल थे। हालांकि इस जंग में इंकलाबी सिपाहियों को काफी नुकसान पहुंचा था।

1857 एक ऐसा दौर था जिसमें कोई अपने मुल्क का मुस्तक़बिल अंग्रेजी और अंग्रेजों के साथ देख रहा था तो कोई अपनी विरासत और शकाफत को बचाने की जंग लड़ रहा था, एक तरफ सर सैय्यद अहमद खां थे जिन्होंने मुसलमानों को अंग्रेजी ज़ुबान और मगरिबी तालीम से जोड़ने के लिये अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की बुनियाद रखी तो वहीं दूसरी ओर मौलना क़ासिम नानोतवी थे जो अंग्रेजी ज़ुबान और अंग्रेजों के सख़्त खिलाफ थे उन्होंने इस्लामिक तहज़ीब को बचाने के लिये दारूल उलूम की बुनियाद रखी।

1857 के इंकलाब के नाकामयाब होने के बाद दारूल उलूम देवबंद के मौलाना हुसैन अहमद मदनी, मौलाना अनवर शाह कश्मीरी और मौलाना किफ़ायतुल्लाह देहलवी जैसे कई बड़े उलेमाओं ने 1919 में "जमीयत उलेमा हिन्द" की बुनियाद रखी और अंग्रेजों के खिलाफ बग़ावत जारी रखी। इस बग़ावत की वजह से हुसैन अहमद मदनी, मौलाना उज़ैर गुल हकीम नुसरत, मौलाना वहीद अहमद सहित कई उलेमाओं को अग्रेजों ने जेल में डाल दिया था और कई उलेमाओं को मुल्क़ बदर कर दिया था।

 

 


No comments:

Popular Posts