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आज से
ठीक
157 साल पहले, आज ही
के
दिन
ही, 30 मई 1866 को मौलाना
क़ासिम
नानौतवी
के
हाथों
दुनिया
की
तीसरी
सबसे
बड़ी
इस्लामिक
यूनिवर्सिटी
"दारुल उलूम"
की
बुनियाद
सहारनपुर, देवबंद में
रखी
गयी
थी।
यह
मिस्र
और
मदीना
यूनिवर्सिटी
के
बाद
दुनिया
की
तीसरी
सबसे
बड़ी
इस्लामिक
यूनिवर्सिटी
है।
यहां
दुनिया
भर
से
स्टूडेंट्स
इस्लामिक
तालीम
के
लिए
आते
है।
इस यूनिवर्सिटी
के
उलेमा-ए-कराम
1857 के इंकलाब
में
भी
सक्रिय
थे
10 मई 1857 को
"शामली की
जंग"
में
ब्रिटिश
फौज
के
खिलाफ
मौलाना
इम्दादुल्लाह
मुहाजिर मक्की और
मौलान
रशीद
अहमद
गंगोही
के
साथ
मौलाना
क़ासिम
नानौतवी
भी
शामिल
थे।
हालांकि
इस
जंग
में
इंकलाबी
सिपाहियों
को
काफी
नुकसान
पहुंचा
था।
1857 एक
ऐसा
दौर
था
जिसमें
कोई
अपने
मुल्क
का
मुस्तक़बिल
अंग्रेजी
और
अंग्रेजों
के
साथ
देख
रहा
था
तो
कोई
अपनी
विरासत
और
शकाफत
को
बचाने
की
जंग
लड़
रहा
था, एक तरफ
सर
सैय्यद
अहमद
खां
थे
जिन्होंने
मुसलमानों
को
अंग्रेजी
ज़ुबान
और
मगरिबी
तालीम
से
जोड़ने
के
लिये
अलीगढ़
मुस्लिम
यूनिवर्सिटी
की
बुनियाद
रखी
तो
वहीं
दूसरी
ओर
मौलना
क़ासिम
नानोतवी
थे
जो
अंग्रेजी
ज़ुबान
और
अंग्रेजों
के
सख़्त
खिलाफ
थे
उन्होंने
इस्लामिक
तहज़ीब
को
बचाने
के
लिये
दारूल
उलूम
की
बुनियाद
रखी।
1857 के
इंकलाब
के
नाकामयाब
होने
के
बाद
दारूल
उलूम
देवबंद
के
मौलाना
हुसैन
अहमद
मदनी, मौलाना अनवर
शाह
कश्मीरी
और
मौलाना
किफ़ायतुल्लाह
देहलवी
जैसे
कई
बड़े
उलेमाओं
ने
1919 में
"जमीयत उलेमा
ए
हिन्द"
की
बुनियाद
रखी
और
अंग्रेजों
के
खिलाफ
बग़ावत
जारी
रखी।
इस
बग़ावत
की
वजह
से
हुसैन
अहमद
मदनी, मौलाना उज़ैर
गुल
हकीम
नुसरत, मौलाना वहीद
अहमद
सहित
कई
उलेमाओं
को
अग्रेजों
ने
जेल
में
डाल
दिया
था
और
कई
उलेमाओं
को
मुल्क़
बदर
कर
दिया
था।
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