धर्मशास्त्र विभाग ने अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया
अलीगढ़, 4 मार्चः अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के सुन्नी धर्मशास्त्र विभाग द्वारा 20वी शताब्दी में भार्तीय दीप समूह में कुरानी शोध विषय पर दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया गया।
यूनिवर्सिटी पॉलिटेक्निक के असेंबली हॉल में उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रोफेसर तारिक मंसूर ने कहा कि किसी भी चीज को समझने के लिए उसकी पृष्ठभूमि और वक्ता के अर्थ को जानना आवश्यक है, इसलिए कुरान, इसकी व्याख्याएं और इससे संबंधित विज्ञान और कला का भी ज्ञाान अर्जित करना चाहिए।
प्रोफेसर मंसूर ने कहा कि अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय में प्राच्य अध्ययन विभाग के साथ-साथ आधुनिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विभाग भी हैं जिसमें धर्मशास्त्र संकाय का सबसे पुराना संकाय है। उन्होंने कहा कि हमें ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन करते रहना चाहिए जिससे देश में अंतरधार्मिक संवाद एवं एकता और भाईचारे को बढ़ावा मिले।
धर्मशास्त्र संकाय के डीन प्रोफेसर तौकीर आलम फलाही ने अपने उद्घाटन भाषण में कहा कि कुरान मनुष्य का मार्गदर्शन करता है। मुस्लिम विद्वानों के अतिरिक्त प्राच्यविदों ने भी अपने-अपने ढंग से इस ग्रंथ की सेवा की है।
प्रोफेसर मुहम्मद सऊद आलम कासमी ने पवित्र कुरान के अनुवाद और व्याख्या की ऐतिहासिक निरंतरता का वर्णन करते हुए भारतीय टीकाकारों और अनुवादकों का संक्षिप्त परिचय दिया।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि मुफ्ती मोहम्मद राशिद आजमी ने अपने संबोधन में कुरान के अनुवादकों और बीसवीं शताब्दी के टीकाकारों की सेवाओं का उल्लेख किया।
मजलिस-ए-उलेमा हिंद के महासचिव मौलाना सैयद कल्ब जवाद ने कहा कि कुरान शांति की किताब है, इसीलिए हुदैबिया के शांति सम्झौते को जीत के शब्दों में वर्णित किया गया है।
जामिया मिल्लिया इस्लामिया के प्रोफेसर इक्तदार मुहम्मद खान ने भी संबोधित किया।
दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी के निदेशक प्रोफेसर मुहम्मद हबीबुल्लाह ने स्वागत भाषण प्रस्तुत किया।
संगोष्ठी संयोजक प्रोफेसर मुहम्मद सलीम कासमी ने उपस्थितजनों को धन्यवाद ज्ञापित किया।
प्रोफेसर मुहम्मद राशिद ने संगोष्ठी का संचालन किया। संगोष्ठी की संयोजिका डा शाइस्ता परवीन हैं।
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