Panel discussion on Digital Violence and Gender Justice During 16 Days of Activism by SNCWS, JMI
SNCWS, Jamia Millia Islamia Holds a Panel Discussion on Digital Violence and Gender Justice
एसएनसीडब्ल्यूएस, जामिया मिल्लिया इस्लामिया ने किया- डिजिटल वायलेंस और जेंडर जस्टिस पर पैनल डिस्कशन आयोजित
सरोजिनी नायडू महिला अध्ययन केंद्र, जामिया मिल्लिया इस्लामिया ने 29 नवंबर 2025 को डिजिटल युग में जेंडर-बेस्ड वायलेंस पर एक एक्सटेंशन लेक्चर आयोजित किया। यह लेक्चर ‘इंटरनेशनल डे फॉर द एलिमिनेशन ऑफ़ वायलेंस अगेंस्ट वीमेन एंड गर्ल्स’ के मौके पर 16 दिनों के एक्टिविज़्म का हिस्सा था। यह इवेंट CWDS और पूरे भारत की 16 यूनिवर्सिटीज़ के साथ मिलकर किया गया था जिसे डॉ. अमीना हुसैन ने कोऑर्डिनेट किया था।
प्रो. निशात जैदी SNCWS की निदेशक ने स्वागत वक्तव्य दिया, जिसमें इस बात पर ज़ोर दिया गया कि यह समझना बहुत ज़रूरी है कि डिजिटल स्पेस ने नुकसान, सुरक्षा, विज़िबिलिटी और न्याय के माहौल को कैसे बदल दिया है। उन्होंने जेंडर वायलेंस के उभरते रूपों की जांच करने के लिए सेंटर के कमिटमेंट और तेज़ी से बदलते टेक्नोलॉजी के साथ इंस्टीट्यूशनल जुड़ाव की ज़रूरत पर ज़ोर दिया।
यह सेशन एक पैनल डिस्कशन के तौर पर हुआ, जिसे SNCWS की पीएचडी स्कॉलर चैताली पंत ने मॉडरेट किया। उन्होंने बातचीत को आज की फेमिनिस्ट बहसों और डिजिटल कमज़ोरियों से सबसे ज़्यादा प्रभावित समुदायों के अनुभवों के बीच रखा। ज़मीनी बातों से पर प्रकाश डालते हुए, उन्होंने कहा कि आज हिंसा सिर्फ़ फिजिकल माहौल से आगे बढ़कर डिजिटल प्लेटफॉर्म तक फैल गई है, जहाँ एल्गोरिदम से होने वाली असमानताएँ, डीपफेक, कोऑर्डिनेटेड ह्रासस्मेंट, डेटा का गलत इस्तेमाल, और धुंधली पब्लिक-प्राइवेट सीमाएँ; मौजूदा जाति, वर्ग, जेंडर और लेबर के भेदभाव को और बढ़ा रही हैं।
पैनल ने इस बात पर चर्चा की कि ग्लोबल बदलाव, कानूनी कमियां और रोज़ाना के डिजिटल अनुभव कैसे एक-दूसरे से जुड़ते हैं, और AI से चलने वाले माहौल में इनक्लूजन, एजेंसी और सेफ्टी का क्या मतलब है। इसमें पल्लवी महाजन , व्हाइटशील्ड , यूएई की सलाहकार और एडवोकेट आयशा जमाल, भारत के सर्वोच्च और उच्च न्यायालयों में प्रैक्टिशनर भी शामिल हुईं। जिन्होंने पूरक वैश्विक और जमीनी दृष्टिकोणों से इन सवालों पर विचार किया। चर्चा में प्लेटफ़ॉर्म-सक्षम नुकसानों में वृद्धि, जवाबदेही तंत्र की आवश्यकता, उत्तरजीवी-केंद्रित सुरक्षा सुविधाएँ और सामूहिकीकरण और अधिकार-आधारित तकनीकी इकोसिस्टम की भूमिका पर प्रकाश डाला गया। वक्ताओं ने तदर्थ कानूनी प्रतिक्रियाओं, डिजिटल साक्ष्य चुनौतियों, पुलिसिंग प्रथाओं, समकालीन समय में ह्युमर और मेम संस्कृतियों के विघटन, मानसिक स्वास्थ्य प्रभावों, बेहतर कानूनी जागरूकता की आवश्यकता, सुलभ निवारण प्रणालियों और उत्तरजीवी -केंद्रित दृष्टिकोणों की आवश्यकता जैसे मुद्दों को संबोधित किया। बातचीत के नोट्स ने जेंडर-जागरूक एआई सिस्टम, स्पष्ट कानूनी ढांचे, एसएचजी-आधारित डिजिटल साक्षरता, निवारक सुरक्षा मॉडल और मजबूत सामुदायिक समर्थन संरचनाओं के महत्व को रेखांकित किया।
अमीना हुसैन के वोट ऑफ़ थैंक्स के साथ हुआ। इस इवेंट में इस बात पर ज़ोर दिया गया कि साइबरस्पेस में जेंडर पर आधारित हिंसा से निपटने के लिए कानून, पॉलिसी, टेक्नोलॉजी और कम्युनिटी प्रैक्टिस में मिलकर कोशिश करने की ज़रूरत है, ताकि सुरक्षित और ज़्यादा ज़िम्मेदार डिजिटल भविष्य बनाया जा सके।
प्रो. साइमा सईद
मुख्य जनसंपर्क अधिकारी
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